12-12-98  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘मेरे-मेरे का देह-अभिमान छोड़ ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो’’

आज बापदादा अपने चारों ओर के श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को देख रहे हैं। ब्राह्मण अर्थात् ब्रह्मा मुख वंशावली। हर ब्राह्मण आत्मा के भाग्य को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। हर ब्राह्मण आत्मा को जन्मते ही स्वयं ब्रह्मा बाप द्वारा मस्तक में स्मृति का तिलक लगता है। स्वयं भगवान तिलकधारी बनाते हैं। साथ-साथ हर ब्राह्मण आत्मा को पवित्रता के महामन्त्र द्वारा लाइट का ताज धारण कराते हैं और साथ-साथ हर ब्राह्मण आत्मा को विश्व-कल्याणकारी आत्मा बनाए जिम्मेवारी का ताज धारण कराते हैं। डबल ताज है और भगवान स्वयं अपने दिल तख़्तनशीन बनाते हैं। तो जन्मते ही तिलक, ताज और तख़्तधारी बन जाते हैं। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में कोई आत्मा का नहीं हो सकता। तो इतने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति रहती है कि हम ब्राह्मण जन्मते ही ऐसे भाग्यवान बनते हैं? आप ब्राह्मणों की निशानी दुनिया वालों ने कृष्ण रूप में दिखा दी है। लेकिन वह विश्व का राजकुमार है इसलिए राज्य की निशानी तिलक, ताज, तख़्त देते हैं। फिर भी उसको छोटे-पन में तिलक ताज, तख्त नहीं मिलता लेकिन आप ब्राह्मणों को तिलक, ताज और तख़्त तीनों ही प्राप्त होता है। परमात्म-बाप द्वारा यह तीनों प्राप्तियाँ होना यह सिर्फ ब्राह्मणों के भाग्य में है। तो बापदादा देख रहे थे कि मेरे बच्चों का कितना बड़ा भाग्य का सितारा हर एक के मस्तक पर चमक रहा है। ऐसा भाग्य का सितारा आपको अपने में दिखाई देता है? सदा चमकता हुआ दिखाई देता है या कभी बहुत अच्छा चमकता है और कभी सितारे की चमक कम हो जाती है? यह भाग्य का सितारा विचित्र सितारा है। तो बापदादा आप सभी बच्चों को जब भी देखते हैं, मिलते हैं तो हर एक बच्चे के मस्तक में सितारा चमकता हुआ देख हर्षित होते हैं। सितारा चमकते-चमकते चमक कम क्यों होती है? उसके कारण को आप सब अच्छी तरह से जानते हो।

बापदादा को बच्चों का चार्ट देखकर मुस्कराहट भी आती, जब भी किसी से पूछो कि क्या बनना है? लक्ष्य क्या है? तो मैजॉरिटी का एक ही जवाब होता है कि नम्बरवन बनना है। सूर्यवंशी बनना है। चन्द्रवंशी राजा राम-सीता भी बनने नहीं चाहते। लेकिन जब लक्ष्य सूर्यवंशी नम्बरवन का है, तो जैसा लक्ष्य वैसे लक्षण सदा सूर्यवंश का दिखाई देना आवश्यक है। बच्चों का लक्ष्य सूर्यवंश का है अर्थात् सदा विजयी का है, नम्बरवन सूर्यवंशी की निशानी है सदा विजयी। सूर्य की कलायें कम और ज्यादा नहीं होतीं। उदय होता है और अस्त होता है लेकिन चन्द्रवंशी मुआिफक कलायें कम नहीं होतीं। तो सूर्यवंश की निशानी है सदा एकरस और सदा विजयी। चन्द्रवंश को क्षत्रिय कहा जाता है, क्षत्रिय जीवन में कभी हार होती, कभी जीत होती। कभी सफलतामूर्त्त और कभी मेहनत की मूर्त्त। युद्ध करना अर्थात् मेहनत करना। चन्द्रवंश की कलायें एकरस नहीं होतीं, इसलिए लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। जैसे लक्ष्य रखा है बाप समान बनने का, हर एक बच्चा यही कहता है कि बाप समान बनना है। तो बाप सदा सहज विजय स्वरूप है। अगर एकरस अवस्था नहीं है तो क्या नम्बरवन बनेंगे वा नम्बरवार में आयेंगे? एक है नम्बरवन और दूसरा है नम्बरवार। तो अपने से पूछो हम नम्बरवन हैं वा नम्बरवार की लिस्ट में हैं? नम्बरवन अर्थात् फॉलो ब्रह्मा बाप।

बापदादा सहज साधन बताते हैं कि फॉलो करने में मेहनत कम लगती है। ब्रह्मा के पाँव अर्थात् कदम, हर कार्य के कदम रूपी पाँव के निशान हैं। तो पाँव पर पाँव रखकर चलना सहज होता है। नया रास्ता नहीं ढूँढना है, पाँव पर पाँव अर्थात् कदम पर कदम रखना है। जो भी कार्य करते हो चाहे मन्सा संकल्प करते हो, चाहे बोल बोलते हो, चाहे कर्म में सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हो, हर कर्म करने के पहले यह सोचो कि जो मैं ब्राह्मण आत्मा कर्म कर रही हूँ, कर रहा हूँ, क्या यह ब्रह्मा बाप समान है? ब्रह्मा बाप का संकल्प क्या रहा? मेरा संकल्प भी उसी प्रमाण है? हर बोल ब्रह्मा समान है? अगर नहीं है तो नहीं  करना है। न सोचना है, न बोलना है, न करना है। ऐसे नहीं ब्रह्मा बाप का कदम एक और बच्चों का कदम दूसरा, तो जो लक्ष्य है, मंज़िल है बाप समान बनने का, वह कैसे होगा? अगर ब्रह्मा के हर कदम समान कदम पर कदम फॉलो करते चलेंगे तो एक तो सदा अपने को सहज पुरुषार्थी अनुभव करेंगे और सदा सम्पूर्णता की मंज़िल समीप अनुभव करेंगे।

ब्रह्मा बाप समान अर्थात् सम्पूर्णता के मंज़िल पर पहुँचना। तो ब्रह्मा बाप वतन में आप सब बच्चों के सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ते बनने का आह्वान कर रहे हैं। ब्रह्मा बाप के आह्वान का गीत वा मधुर आह्वान का आवाज़ सुनाई नहीं देता? ‘‘आओ बच्चे, मीठे बच्चे, जल्दी-जल्दी आओ’’ यह गीत वा बोल सुनाई नहीं देता? ब्रह्मा बाप का आवाज़ सुनो, कैच करो। ब्रह्मा बाप यही कहते कि बच्चे 99 वर्ष का सोचते बहुत हैं, क्या होगा, यह होगा, वह होगा... यह होगा वा नहीं होगा...! यह होगा! - इस सोच में ज्यादा रहते हैं। यह तो नहीं होगा! कभी सोचते होगा, कभी सोचते नहीं होगा। यह होगा, होगा का गीत गाते रहते हैं। लेकिन अपने फरिश्तेपन के, सम्पन्न सम्पूर्ण स्थिति में तीव्रगति से आगे बढ़ने का श्रेष्ठ संकल्प कम करते हैं। होगा, क्या होगा!... यह गा-गा के गीत ज्यादा गाते हैं। बाप कहते हैं कुछ भी होगा लेकिन आपका लक्ष्य क्या है? जो होगा वह देखने और सुनने का लक्ष्य है वा ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बनने का है? उसकी तैयारी कर ली है? प्रकृति अपना कुछ भी रंग-रूप दिखाये, आप फरिश्ता बन, बाप समान अव्यक्त रूपधारी बन प्रकृति के हर दृश्य को देखने के लिए तैयार हो? प्रकृति की हलचल के प्रभाव से मुक्त फरिश्ते बने हो? अपनी स्थिति की तैयारी में लगे हुए हो वा क्या होगा, क्या होगा - इसी सोचने में लगे हो? क्या कोई भी परिस्थिति सामने आये तो आप प्रकृतिपति अपने प्रकृतिपति की सीट पर सेट होंगे वा अपसेट होंगे? यह क्या हो गया? यह हो गया, यह हो गया... इसी नज़ारों के समाचारों में बिजी होंगे वा सम्पन्नता की स्थिति में स्थित हो किसी भी प्रकृति की हलचल को चलते हुए बादलों के समान अनुभव करेंगे?

तो ब्रह्मा बाप बच्चों से पूछ रहे हैं कि मेरे समान फरिश्ते सदाकाल के लिए बने हो? क्योंकि आप बच्चों को व्यक्त में रहते अव्यक्त बनना है। आप कहेंगे - बाप तो अव्यक्त हो गया, हमें भी ऐसे अव्यक्त बना देवे ना। ब्रह्मा बाप कहते हैं पहले अपने आपसे पूछो कि जो विश्व-कल्याण की जिम्मेवारी का ताज बाप ने पहनाया है, वह सम्पन्न कर लिया है? विश्व-कल्याणकारी, विश्व का कल्याण सम्पन्न हुआ है? ब्रह्मा बाप तो अव्यक्त इसलिए बनें कि बच्चों को विश्व-कल्याण का कार्य देकर, बंधन से भी मुक्त हो सेवा की रफ़्तार तीव्र कराने के निमित्त बनना था, जिसका प्रत्यक्ष स्वरूप चारों ओर देख रहे हो। चाहे देश में, चाहे विदेश में अव्यक्त ब्रह्मा द्वारा तीव्रगति हुई है और होनी भी है। सेवा में तीव्र गति का निमित्त आधार ब्रह्मा बाप को बनना था। लेकिन राज्य अधिकारी एक ब्रह्मा बाप को नहीं बनना है, साथ में बच्चों को भी राज्य अधिकार लेना है। इसलिए साकार में निमित्त आप साकार रूपधारी बच्चों को बनाया है। लेकिन अन्त में आप सब बच्चों को व्यक्त में अव्यक्त फरिश्ता बन विश्व-कल्याण के सेवा की रफ़्तार तीव्र कर समाप्ति और सम्पन्न होना है और करना है।

ब्रह्मा बाप कहते हैं कि क्या 99 में समाप्ति करें? प्रकृति को एक ताली बजायेंगे और प्रकृति तो तैयार खड़ी है। क्या फरिश्ते समान डबल लाइट बन गये हो? कम से कम 108 ऐसे सदा विजयी बने हैं, जो किसी भी प्रकार के व्यर्थ और निगेटिव संकल्प, बोल वा कर्म अर्थात् सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में पास हों? व्यर्थ वा निगेटिव - यही बोझ सदाकाल के लिए डबल लाइट फरिश्ता बनने नहीं देता। तो ब्रह्मा बाप पूछते हैं - इस बोझ से हल्के फरिश्ते बने हैं? अण्डरलाइन है - सदा। कम से कम 108 तो सदा फरिश्ता जीवन का अनुभव करें तब कहेंगे ब्रह्मा बाप समान बनना। तो बाप पूछते हैं - ताली बजायें? या 2000 में ताली बजायें, 2001 में ताली बजायें, कब बजायें? क्या सोचते हो ताली बजेगी तो बन जायेंगे, ऐसे? क्या सोचते हो - ताली बजेगी उस समय बनेंगे? क्या होगा? बजायें ताली? बोलो तैयार हो? पेपर लेवें? ऐसे थोड़ेही मान जायेंगे, पेपर लेंगे? टीचर्स बताओ - पेपर लें? सब छोड़ना  पड़ेगा। मधुबन वालों को मधुबन छोड़ना पड़ेगा, ज्ञान सरोवर वालों को ज्ञान सरोवर, सेन्टर वालों को सेन्टर, विदेश वालों को विदेश, सब छोड़ना पड़ेगा। तो एवररेडी हैं? अगर एवररेडी हो तो हाथ की ताली बजाओ। एवररेडी? पेपर लें? कल एनाउन्समेंट करें? वहाँ जाकर भी नहीं छोड़ना है, वहाँ जाकर थोड़ा ठीक करके आऊँ, नहीं। जहाँ हूँ, वहाँ हूँ। ऐसे एवररेडी। अपना दफ्तर भी नहीं, खटिया भी नहीं, कमरा भी नहीं, अलमारी भी नहीं। ऐसे नहीं कहना थोड़ा-सा काम है ना, दो दिन करके आयें। नहीं। आर्डर इज़ आर्डर। सोचकर हाँ कहो। नहीं तो कल आर्डर निकलेगा, कहाँ जाना है, कहाँ नहीं जाना है। निकालें आर्डर, तैयार हैं? इतना हिम्मत से हाँ नहीं कह रहे हैं। सोच रहे हैं थोड़ा-सा एक दिन मिल जाये तो अच्छा है। मेरे बिना यह नहीं हो जाए, यह नहीं हो जाए, यह वेस्ट संकल्प भी नहीं करना। ब्रह्मा बाप ट्रांसफर हुआ तो क्या सोचा कि मेरे बिना क्या होगा? चलेगा, नहीं चलेगा। चलो एक डायरेक्शन तो दे दूं, डायरेक्शन दिया? अपनी सम्पन्न स्थिति द्वारा डायरेक्शन दिया, मुख से नहीं। ऐसे तैयार हो? आर्डर मिला और छोड़ो तो छूटा। हलचल करें? ऐसा करना है - यह बता देते हैं। आर्डर होगा, पूछकर नहीं, तारीख नहीं फिक्स करेंगे। अचानक आर्डर देंगे आ जाओ, बस। इसको कहा जाता है डबल लाइट फरिश्ता। आर्डर हुआ और चला। जैसे मृत्यु का आर्डर होता है फिर क्या सोचते हैं, सेन्टर देखो, आलमारी देखो, जिज्ञासु देखो, एरिया देखो......! आजकल तो मेरे-मेरे में एरिया का झमेला ज्यादा हो गया है, मेरी एरिया! विश्वकल्याणकारी की क्या हद की एरिया होती है? यह सब छोड़ना पड़ेगा। यह भी देह का अभिमान है। देह का भान फिर भी हल्की चीज़ है, लेकिन देह का अभिमान यह बहुत सूक्ष्म है। मेरा-मेरा इसको ही देह का अभिमान कहा जाता है। जहाँ मेरा होगा ना वहाँ अभिमान ज़रूर होगा। चाहे अपनी विशेषता प्रति हो, मेरी विशेषता है, मेरा गुण है, मेरी सेवा है, यह सब मेरापन - यह प्रभू प्रसाद है, मेरा नहीं। प्रसाद को मेरा मानना, यह देह-अभिमान है। यह अभिमान छोड़ना ही सम्पन्न बनना है। इसीलिए जो वर्णन करते हो फरिश्ता अर्थात् न देह अभिमान, न देह-भान, न भिन्न-भिन्न मेरे-पन के रिश्ते हों, फरिश्ता अर्थात् यह हद का रिश्ता खत्म। तो अब क्या तैयारी करेंगे? ब्रह्मा बाप का आवाज़ अटेन्शन से सुनो, आह्वान कर रहे हैं। बाप कहते हैं समाप्ति का नगाड़ा बजाना तो बहुत सहज है, जब चाहें तब बजा सकते हैं लेकिन कम-से-कम सतयुग आदि के 9 लाख तो एवररेडी हो ना! चाहे नम्बरवार हों, नम्बरवन तो थोड़े होंगे। कम से कम 108 नम्बरवन, 16 हज़ार नम्बर टू, 9 लाख नम्बर थ्री। लेकिन इतने तो तैयार हो जाएँ। राजधानी तो तैयार होनी चाहिए।

अभी रिज़ल्ट में बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय माया का स्वरूप निगेटिव और व्यर्थ संकल्प का मैजारिटी में है। विश्व-कल्याणकारी की स्टेज है - सदा बेहद की वृत्ति हो, दृष्टि हो और बेहद की स्थिति हो। वृत्ति में ज़रा भी किसी आत्मा के प्रति निगेटिव या व्यर्थ भावना नहीं हो। निगेटिव बात को परिवर्तन कराना, वह अलग चीज़ है। लेकिन जो स्वयं निगेटिव वृत्ति वाला होगा वह दूसरे के निगेटिव को भी पॉजेटिव में चेंज नहीं कर सकता। इसलिए हर एक को अपनी सूक्ष्म चेकिंग करनी है कि वृत्ति, दृष्टि सर्व के प्रति सदा बेहद और कल्याणकारी है? ज़रा भी कल्याण की भावना के सिवाए हद की भावना, हद के संकल्प, बोल सूक्ष्म में भी समाये हुए तो नहीं हैं? जो सूक्ष्म में समाया हुआ होता है, उसकी निशानी है कि समय आने पर वा समस्या आने पर वह सूक्ष्म स्थूल में आता है। सदा ठीक रहेगा लेकिन समय पर वह इमर्ज हो जायेगा। फिर सोचते हैं यह है ही ऐसा। यह बात ही ऐसी है। यह व्यक्ति ही ऐसा है। व्यक्ति ऐसा है लेकिन मेरी स्थिति शुभ भावना, बेहद की भावना वाली है या नहीं है? अपनी गलती को चेक करो। समझा।

बातों को नहीं देखो, अपने को देखो। बस 99 में यह अपने अन्दर धुन लगाओ जो ब्रह्मा बाप का कदम वह ब्रह्मा बाप समान मेरा हर कदम हो। ब्रह्मा बाप से सभी को प्यार है ना। तो प्यारे को ही फॉलो किया जाता है। बाप समान बनना ही है। ठीक है ना? 99 में सब तैयार हो जायेंगे? एक वर्ष है। यह हो गया, यह हो गया... यह नहीं सोचना। यह तो होना ही है। पहले से ही पता है यह होना है लेकिन बाप समान फरिश्ता बनना ही है। समझा। करना है ना? कर सकेंगे? एक वर्ष में तैयार हो जायेंगे कि आधे वर्ष में तैयार हो जायेंगे? आपके सम्पन्न बनने के लिए ब्रह्मा बाप भी आह्वान कर रहा है और प्रकृति भी इन्तज़ार कर रही है। 6 मास में एवररेडी बनो, चलो 6 मास नहीं एक वर्ष में तो बनो। हलचल में नहीं आना, अचल। लक्ष्य नहीं छोड़ना, बाप समान बनना ही है, कुछ भी हो जाए। चाहे कई ब्राह्मण हिलावें, ब्राह्मण रूकावट बनकर सामने आयें फिर भी हमें समान बनना ही है। पसन्द है यह राय?

(बापदादा ने सभी से हाथ उठवाया और सबका वीडियो, फोटो निकलवाया) यह फोटो सभी को भेजेंगे। यहाँ की मूवी में कोई मिस भी हो सकता है। वतन की मूवी में तो कोई मिस नहीं हो सकता है। अच्छा –

बाप कहते हैं एक सेकण्ड में सभी अभी-अभी विदेही बन सकते हो? तो अभी एक सेकण्ड में विदेही स्थिति में स्थित हो जाओ। (ड्रिल) अच्छा – अभी देह में आ जाओ। अभी फिर विदेही बन जाओ। ऐसे सारे दिन में बीच-बीच में एक सेकण्ड भी मिले, तो बार-बार यह अभ्यास करते रहो। अच्छा।

सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को सदा ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखने वाले फॉलो फादर आज्ञाकारी बच्चों को, सदा ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता स्थिति में स्थित रहने वाले समीप आत्माओं को, सदा प्रकृतिपति बन प्रकृति के हर दृश्य को साक्षी हो देखने वाले अचल-अडोल आत्माओं को, सदा बेहद की वृत्ति और दृष्टि में रहने वाले भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

बाहर जो भी सुन रहे हैं चाहे देश में, चाहे विदेश में उन बच्चों को भी विशेष यादप्यार।

दादियों से - निमित्त बनने से दुआयें मिलती हैं। आप लोगों की तो दवाई भी दुआयें हैं। सभी जो भी निमित्त दादियाँ हैं वा जो भी निमित्त कार्य में मददगार बनते हैं उन्हों को विशेष दुआओं की लिफ्ट है। यज्ञ हिस्ट्री में जो-जो आत्मा जिस कार्य के आदि से अब तक निमित्त बनी है, उनको उस निमित्त बने हुए कार्य की विशेष दुआयें मिलती हैं। निमित्त बनने का समझो एक भाग्य मिलता है। एक तो निमित्त बनने वाले पर सभी की नज़र होने के कारण उसका स्व पर भी अटेन्शन रहता है। उनका पुरूषार्थ अपने प्रति भी सहज हो जाता है। जैसे स्टेज पर बैठते हैं तो स्टेज पर बैठने से स्वत: अटेन्शन होता है, तो निमित्त बनना अर्थात् स्टेज पर हैं। तो स्टेज पर होने के कारण स्व का पुरूषार्थ सहज हो जाता है। सबके सहयोग की दुआयें भी मिलती हैं। अगर निमित्त बनी हुई आत्मा यथार्थ पार्ट बजाती है तो औरों के सहयोग की भी मदद मिलती है। अच्छा है। (ड्रिल बहुत अच्छी लग रही थी) यह रोज़ हर एक को करनी चाहिए। ऐसे नहीं हम बिजी हैं। बीच में समय प्रति समय एक सेकण्ड चाहे कोई बैठा भी हो, बात भी कर रहा हो, लेकिन एक सेकण्ड उनको भी ड्रिल करा सकते हैं और स्वयं भी अभ्यास कर सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है। दो-चार सेकण्ड भी निकालना चाहिए इससे बहुत मदद मिलेगी। नहीं तो क्या होता है, सारा दिन बुद्धि चलती रहती है ना, तो विदेही बनने में टाइम लग जाता है और बीचबी च में अभ्यास होगा तो जब चाहें उसी समय हो जायेंगे क्योंकि अन्त में सब अचानक होना है। तो अचानक के पेपर में यह विदेहीपन का अभ्यास बहुत आवश्यक है। ऐसे नहीं बात पूरी हो जाए और विदेही बनने का पुरूषार्थ ही करते रहें। तो सूर्यवंशी तो नहीं हुए ना! इसलिए जितना जो बिजी है, उतना ही उसको बीच-बीच में यह अभ्यास करना ज़रूरी है। फिर सेवा में जो कभीकभी थकावट होती है, कभी कुछ-न-कुछ आपस में हलचल हो जाती है, वह नहीं होगा। अभ्यासी होंगे ना। एक सेकण्ड में न्यारे होने का अभ्यास होगा, तो कोई भी बात हुई एक सेकण्ड में अपने अभ्यास से इन बातों से दूर हो जायेंगे। सोचा और हुआ। युद्ध नहीं करनी पड़े। युद्ध के संस्कार, मेहनत के संस्कार सूर्यवंशी बनने नहीं देंगे। लास्ट घड़ी भी युद्ध में ही जायेगी, अगर विदेही बनने का सेकण्ड में अभ्यास नहीं है तो। और जिस बात में कमज़ोर होंगे, चाहे स्वभाव में, चाहे सम्बन्ध में आने में, चाहे संकल्प शक्ति में, वृत्ति में, वायुमण्डल के प्रभाव में, जिस बात में कमज़ोर होंगे, उसी रूप में जान-बूझकर भी माया लास्ट पेपर लेगी। इसीलिए विदेही बनने का अभ्यास बहुत ज़रूरी है। कोई भी रूप की माया आये, समझ तो है ही। एक सेकण्ड में विदेही बन जायेंगे तो माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसे कोई मरा हुआ व्यक्ति हो, उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ना। विदेही माना देह से न्यारा हो गया तो देह के साथ ही स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरियाँ सब देह के साथ हैं, और देह से न्यारा हो गया, तो सबसे न्यारा हो गया। इसलिए यह ड्रिल बहुत सहयोग देगी, इसमें कण्ट्रोलिंग पावर चाहिए। मन को कण्ट्रोल कर सकें, बुद्धि को एकाग्र कर सकें। नहीं तो आदत होगी तो परेशान होते रहेंगे। पहले एकाग्र करें, तब ही विदेही बनें। अच्छा। आप लोगों का तो अभ्यास 14 वर्ष किया हुआ है ना! (बाबा ने संस्कार डाल दिया है) फाउण्डेशन पक्का है। आप लोगों की तो 14 वर्ष में नेचर बन गई। सेवा में कितने भी बिजी रहो लेकिन कोई बहाना नहीं चलेगा कि हमको समय नहीं था क्योंकि बापदादा को अभी जल्दी-जल्दी 108 और 16 हज़ार तो तैयार करने हैं। नहीं तो काम कैसे चलेगा। साथी तो चाहिए ना। तो 108 फिर 16 हज़ार, फिर 9 लाख। अभी अगर आपको कहें कि 108 ऐसे नाम बताओ जो वेस्ट और निगेटिव से मुक्त हों, तो आप लोग माला बना सकती हो? सिर्फ 108 कह रहे हैं। 99 तक तो 16 हज़ार चाहिए। 9 लाख तो बन जायेंगे, उसकी कोई बड़ी बात नहीं है। पहले तो 108 तैयार हो जाएँ। (सभा से) आप सोचते हो हम 108 में आयेंगे? अभी जो कुछ हो उसे निकाल लेना, और दादी को कहना कि हम एवररेडी हैं। हाँ अपना-अपना नाम देवें, आफर करो - हम 108 में हैं फिर वेरीफाय करेंगे। सबसे अच्छा तो अपना नाम आपेही देवें।

एक बारी सबको चेंज़ करना ज़रूर है। अभी इत्तला कर रहे हैं तो एवररेडी हो जाना फिर आर्डर करेंगे। मधुबन वालों को भी चेंज़ करेंगे। मधुबन वाले सेन्टरों में जायें, सेन्टर वाले मधुबन में आयें। अपनी अलमारियाँ खाली कर देना। कोई को ताला लगाने नहीं देंगे। अच्छा - यह भी मज़ा है ना। यह भी मज़े का खेल है। अच्छा - अभी क्या करना है।

(काठमाण्डू, देहली, अहमदाबाद, कलकत्ते में बहुत अच्छी सेवायें हुई हैं, काठमाण्डू वालों ने आज विशेष याद भेजी है)

जहाँ भी सेवा की है, वह एक दो से अच्छी है। आरम्भ दिल्ली ने किया, तो दिल्ली में प्रगति मैदान में पहुँचना, यह भी एक अच्छी सेवा की रिज़ल्ट है और दिल्ली राजधानी में अभी ऐसे स्थान पर फ्री ज़मीन लेना - यह सेवा की सफलता है। जो भी आये, जितने भी आये लेकिन दिल्ली में नाम बाला होना अर्थात् चारों ओर आवाज़ फैलना, इसीलिए अभी प्रगति मैदान में झण्डा लहराया, अभी और आगे बढ़ना है। अभी आध्यात्मिक झण्डा, आध्यात्मिकता का नाम बाला करने वाला झण्डा, दिल्ली में करना ही है। और आगे बढ़ना है क्योंकि दिल्ली का आवाज़ टी.वी. द्वारा या अखबारों द्वारा फैलता है। और साथ-साथ जो भी यज्ञ के कार्य होते हैं वह यज्ञ के कार्य में विशेष आत्मायें जो निमित्त बनती हैं, उनके ऊपर भी बड़े प्रोग्राम्स का, नाम का प्रभाव पड़ता है। इसलिए देहली के ऊपर तो बापदादा की नज़र है। आखिर में आध्यात्मिकता का झण्डा, स्थापना में सेवा का झण्डा देहली में लहराया। ऐसे प्रत्यक्षता का झण्डा, आध्यात्मिकता ही श्रेष्ठ है और आध्यात्मिक आत्मायें यही हैं, यह आवाज़ फैलना ही है।

काठमाण्डू में भी वहाँ के महाराजा का प्यार है जनता में। इसलिए महाराजा का आना, यह सभी देशवासियों के ऊपर सहज प्रभाव पड़ गया। और देखा गया है कि नेपाल की धरनी में वहाँ की निमित्त बनी हुई आत्मायें अच्छी पावरफुल हैं। इसलिए नेपाल में सेवा होना सहज है। बच्चों ने मेहनत की है और अच्छे-अच्छे प्रभावित हुए हैं, समीप आये हैं। एक होता है प्रभावित होना, दूसरा होता है समीप सहयोगी बनना। तो नेपाल में समीप सहयोगी आत्मायें भी हैं, यह रिज़ल्ट अच्छी है।

और गुजरात ने बहुत अच्छी मेहनत की है। सहयोगी बनाने का जो लक्ष्य रखा उसमें सफलता अच्छी मिली। इसलिए जो सहयोगी बने तो सहयोगियों को बाप वा ड्रामा द्वारा कुछ न कुछ पुण्य का फल मिलता है। इसलिए वह सहयोग आगे चलकर समीप आते जायेंगे और उन्हों द्वारा सेवा फैलती जायेगी। यह कार्य तो सबसे बड़ा भी किया, बढ़िया भी किया। लक्ष्य अच्छा रखा और हर एक ने अपना जो भी कार्य लिया वह बिना खर्चा सोचने के, बिना हद की बातें सोचने के, जो दिल से, तन से, आपसी प्यार से किया इसमें सफलता है। गुजरात को भी सफलता हुई है और आगे भी होती रहेगी।

कलकत्ता में भी हिम्मत बहुत अच्छी रखी। है सब छोटे-छोटे लेकिन हिम्मत बड़ी रखी। और हिम्मत का फल यज्ञ से विशेष मदद मिली। उमंग-उत्साह में आकर काम कर ही लिया और अच्छा नाम भी हुआ। और योग शिविर में भी अच्छे आये, मेले में भी अच्छे आये। और सब बातों को न देख समय पर उमंग-उत्साह से काम चल ही गया। अच्छा चला। इसलिए छोटे और बड़ा कार्य किया तो उन्हों को विशेष मुबारक हो। अभी जो भी प्रोग्राम्स होंगे, वह बहुत अच्छे होंगे क्योंकि समय को वरदान मिला हुआ है। अभी जहाँ भी करेंगे, रिज़ल्ट अच्छे-ते-अच्छी होगी। अच्छा।

लखनऊ, बैंगलोर, हैदराबाद - तीन जगह बड़े प्रोग्राम होने हैं। तीनों अच्छे हैं। बापदादा तो पहले से ही कहते अच्छा होगा। (मद्रास और बाम्बे में भी बड़े प्रोग्राम होने हैं) सभी को होवनहार मुबारक हो।

अच्छा। ओमशान्ति।